अहींकेँ कहै छी- (पुस्तक समीक्षा)

समीक्षक- केशव कर्ण "करण समस्तीपुरी"
"ओ ईमानदार छल तें लोक सभ ओकरा मारय चाहै छल। लोक सभ कहलकै- तोरा कुकुरक मौअति मारबौ। ओ चुप्प छल, मुदा प्रसन्न कारण- ओ मनुक्खक मौअति नहि मरय चाहै छल।"

This book
इंटरनेट पर मैथिली भाषाक प्रचार-प्रसार मे "कतेक रास बात" सदिखन कटिबद्ध अछि। एहि क्रम में सफलताक नव आयाम स्थापित करैत एहि पर नवप्रकाशित मैथिली पोथीक समीक्षाक प्रकाशन सेहो शुरु कएल गेल। जाहि सँ पाठकगण केँ नव प्रकाशित पोथीक जानकारी आ रचनाकार सभकेँ अपन रचना केँ प्रचार-प्रसारक मौका भेटतन्हि। एहि सँ पहिने राजीवजी नेपाल सँ प्रकाशित, श्री संतोष कुमार मिश्रक लिखल कथा संग्रह "पोसपुत" के समीक्षा प्रस्तुत कएलन्हि। एहि क्रम में सम्पादक केशव कर्ण "करण समस्तीपुरी" प्रस्तुत कय रहल छथि श्री सत्येन्द्र कुमार झाक लिखल मैथिली लघुकथा संग्रह "अहींकेँ कहै छी" के समीक्षा- कुन्दन कुमार मल्लिक।

ई कोनो दिवंगत महापुरुषक उक्ति वा कोनो उपदेशात्मक आख्यानक अंश नहि वरन् श्री सत्येन्द्र कुमार झाजीक लिखल एहि पोथी "अहीं के कहै छी" के एक गोट सम्पूर्ण कथा थिक। सम्प्रति आकाशवाणी, दडिभंगाक प्रशासन एवं लेखा विभाग में कार्यरत सत्येन्द्र जी के ई पहिल प्रकाशित कृति थिक, जाहि मे ओ एकावन टा लघुकथा संजौने छथि। आई जतय मोटगर-मोटगर उपन्यास लिखबाक प्रथा जोर पकरि रहल अछि, वैह ठाम झाजीक श्लिष्ट शैली में बहरायेल ई उद्देश्यपूर्ण लघुकथा संग्रह वर्तमान मैथिली साहित्यक जेठक राति में खसल ओसक समान थीक। स्वाईत संख्याबल पर गुणबलक वरेन्यता एक बेर फेर प्रमाणित भेल। एहि पोथीक लेखकक विशेषता छन्हि, पुरातन संस्कारक प्रति आस्था, रुढी पर क्षोभ आ भविष्यक हेतु आशावादिता। आजुक भौतिक युगीन तीव्रपरिवर्तनशील जीवन मूल्य, पारस्परिक विश्वासक अभाव आ मानवीय संवेदना केर सभटा आयाम के समुचित स्पर्श करैत सत्येन्द्र जीक ई लोकोपयोगी रचना में सुधि पाठक के मनः मष्तिष्क के उद्वेलित करै के सामर्थ्य प्रतीत होयत अछि। एहि संग्रह के "मौअति", "विभेद", "निशाँ", "जल्लाद" " आ "प्रमाण" आदि कहानी बड़ा उत्कृष्ट बनि पडल यै। ओत्तहि "इस्कूल", "मोहलाती", "निर्णय", "दोसर रूप" औसत अछि। मुदा संकलन के आदि मे समादृत "लघुकथा" हमरा बुझने एहि पोथिक प्रभावशाली प्रतिनिधित्व करवा में सक्षम नै अछि। पुस्तक के नाम " अहींके कहै छी" सरस आ आंचलिक लागैत अछि मुदा एकरा बदले पोथिक संदेश-वहन करैत कोनो और नाम रहिते तs और नीक रहितै। प्रस्तुत पुस्तक में एक टा और कष्टकर दोष अछि, पृष्ठ समायोजन। एक्के टा कथाक कयेक जगह प्रकाशन पाठक लोकनिक मार्ग अरुचिकर कs सकैत अछि। एच. जी. पब्लिकेशन्स, शिमला (हिमाचल प्रदेश) सँ प्रकाशित ई पोथीक दाम एकावने टाका मात्र अछि। पोथीक लेल श्री सत्येन्द्र झा सँ एहि पता पर सम्पर्क कएल जाउ-

श्री सत्येन्द्र कुमार झा,
लेखा एवम् प्रशासन अनुभाग,
आकाशवाणी दरभंगा (बिहार)- 846 004,
मो.- +91-98356 84869

3 comments:

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

इंटरनेट पर मैथिली ब्लॉग सभहक बीच मे अपन विशिष्ट स्थान बना चुकल "कतेक रास बात" के लेल इ एकटा नव उपलब्धि अछि। श्री सत्येन्द्र झाजी सँ हमरा कोनो परिचय नहि छल। सुभाष चन्द्रजी केँ माध्यम सँ ओ अपन लघुकथा संग्रह "अहिंकेँ कहैत छी" भेजलथि। इ एहि मंच केर लोकप्रियताक द्योतक अछि। समस्त "कतेक रास बात" परिवार के तरफ सँ सत्येन्द्रजी केँ हार्दिक धन्यवाद आ शुभकामना।
केशवजी, एहेन पेशेवर समीक्षा के लेल अहूँ बधाई के पात्र छी। मोन राखब हमरा लोकनिक बीच साहित्यक अधिकारिक योग्यता राखय बला अहीं टा छी।
अपनेक-
कुन्दन कुमार मल्लिक
सम्पादक, "कतेक रास बात"।

Anonymous said...

kitab kathmandu me kata bhetat se bat bujhabak chhal je hamhu padhwak mauka pabi.

Thanks & Regd.

Santosh Kr. Mishra

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

संतोष मिश्रजी,
इ पोथी नेपाल मे विक्रि हेतु उपलब्ध नहि अछि। यदि अपनेक केँ इ पोथी चाही तँ श्री सत्येन्द्र कुमार झाजी सँ एहि पता पर सम्पर्क करु-
श्री सत्येन्द्र कुमार झा,
लेखा एवम् प्रशासन अनुभाग,
आकाशवाणी दरभंगा,(बिहार)- 846 004,
मो.- +91-98356 84869

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