गरजि रहल मेघ,
बाजय टर-टर बेंग,
दामिनी रहि-रहि दमकय,
दादुर, झिंगुर संगहि बाजय,
सब मिलि के बाजि रहल अछि,
आयल-आयल सावन,
लागय बड मनभावन,
खेत-पथार हरियायल,
गर्मी भागि परायल,
पोखरि-डबरा सभ भरि गेल,
पोठी-टेंगरा सहज भs गेल,
बहादुर भैया बरद हाँकलथि,
रोपनी आब शुरु भs गेल,
निहुर-निहुर रोपय बहिना,
रमखेतारी बाली गीत उठौलक,
आयल-आयल सावन,
लागय बड मनभावन,
सखी-बहिनपा झूला झूलथि,
कजरी-मल्हार सँगहि गाबथि,
सभहक हाथ मेँहदी लागल,
प्रियंका भौजी घोघ उठाओल,
हुनक जे मधुश्रावणी आयल,
रंग-बिरंगी बतगबनी गायल,
सखी-सहेली फूल लोढय चललथि,
खेलथि झूमरि, सभ मिलि गाबथि,
आयल-आयल सावन,
लागय बड मनभावन।
(विशेष सुधार आ अंतिम पैरा श्री राजेश रंजन झा, नई दिल्ली, मो.- +९१-९८१८५५४०४६ द्वारा लिखल गेल। राजेश जी केँ धन्यवाद।)
6 comments:
नीक प्रस्तुति. मुदा कुन्दन जी कविता’क अलावा दोसरो रचना अहाँ सँ अपेक्षित अछि,
पद्मनाभजी,
अहाँक आज्ञा शिरोधार्य। कविता के अलावा किछु आर लिखि सकब से तs नहि कहि सकैत छी मुदा प्रयास करय में कोनो हर्ज नहि। एहि के लेल अपनेक लोकनि सँ मार्गदर्शनक आस रहत।
पाठकगण सँ अनुरोध जे एहि कविता पर कनेक ध्यान दिऔक किएक जे एकर अंतिम पैरा में लय टुटि रहल अछि। अपनेक लोकनिक सुझावक प्रतीक्षा रहत।
सादर-
कुन्दन कुमार मल्लिक
बड नीक ! लागल जे बंगालौरो में सावन - भादों आवि गेल ! रचना के संघे-संघ रचनाधर्मिता'क प्रवाह सेहो अत्यन्त प्रशंसनीय !
sir,
"sabhak haath me menhdi lagal" san aaga hamar sudha e aichh je-
Priyanka bhouji Ghogh ugharal,
hunak pratham madhusravani aayal,
rang birhi batgabni gayal,
sakhi-saheli phool lodhai challaith,
khelait jhumair sabh mili gabthi,
Aayal-Aayal Savan,
Lagay bad man bhavan!!
kichhu bhul k lel kshma chahait Chhi.
Bishes Dosar ber..
Apnek
Rajesh Jha
rajesh90ranjan@gmail.com
राजेशजी,
अहाँक सुझाव अनुसार कविता में सुधार कए देल गेल। अहिं एहेन सुधी पाठक हमरा लोकनिक प्रेरणास्रोत छी। हार्दिक धन्यवाद।
अपनेक-
कुन्दन कुमार मल्लिक
bahut badhiya kunda jee, sawan ke bar neek vivran deliyai han apan rachna me.Bahar rahait yehe takait chai hamra tarhak lok sab. Aha gaam ke yaad taja ka delao han.Dhanyavad.
Pankaj kumar jha
kushothar, Laheriyasarai
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