बेटी के जनम पर- कुन्दन कुमार मल्लिक

(११ मई, २००८। बंगलोर सँ हैदराबाद जाय काल में)
किछु तs नहिं बदलल
सभ किछु ओहिना अछि,
बस नाम के आगू डिग्री लागि गेल
मुदा सोच ओएह अछि,
परिवेश बदलल,
मुदा परिदृश्य ओएह अछि,
चेहरा बदलल,
मुदा लोक ओएह अछि,
संसद भवन सs राष्ट्रपति भवन तक
महिला लोकनि विद्यमान छथि
चारु कात महिला आरक्षण के चर्चा अछि,
मुदा एखनो बेटी के जनम लयते,
कहय छथि,
मारि बाढ़न्हि, फेर बेटी जनमौलक

- कुन्दन कुमार मल्लिक,
ग्राम- बलियारी, डाक- झंझारपुर,
जिला- मधुबनी (बिहार)- ८४७४०४
ई-मेल- kkmallick@gmail.com
सम्पर्क-+९१-९७३९००४९७० (बंगलोर)

7 comments:

Unknown said...

Bahut nik lagal sange apan swarachit kavita ke du panti likh rahal chhi kichhu truti hoi ta maag karab-
E nav gap nahi sabik'k mantrana,
Nari sahait rahli tan yatna,
sab tham hoit chhal hinke abhelna,
parda me hinka afuaayal gel
kiya purvahi san janani davaol gel.

Ahilya padtarit gelih,
Dropdi panch go ke patni velih,
Sita agni pariksha delih,
Nariye ta sab din sati vel,
kiya purvahi san janani davaol ge.

Bishesh Dosar ber
Rajesh R Jha

करण समस्तीपुरी said...

कुन्दन जी,
रचनाधर्मिता प्रशंसनीय आ विषय सेहो वरेन्य ! मुदा अपने'क ई कविता पढ़ला के बाद एक टा हिन्दी गीत मोन परि गेल,

अजीब दास्ताँ है ये,
कहाँ शुरू कहाँ खत्म....

रचना में व्यंग्य त नीक अछि कनेक बेवाक हेबा चाही,हमरा समझ से ताकि पाठक सहजता से रचना के कथ्य से अंतरंगता स्थापित क सकये ! अन्यथा काव्य के की प्रयोजन! किछु बेसी लिखा गेल होए त मोने में राखब !!

सादर-सप्रेम,
केशव

Kumar Padmanabh said...

कुन्दन जी,
लगाम थाम्हने रहु. हम आइ काल्हि अत्यधिक व्यस्त छी. पोस्ट करबाक टाइम नहि भेटि रहल अछि.
कविता बहुत नीक छल. अन्तिम लाइन सब भाव समेटने अछि.

Anonymous said...

bhout nik lagal aapnek web site dekhi ke man harshit bho gel apne UNI8 Method se devnagari me likhlon ye ekar bare me humar kich bata ske chi aapne ke bhout bhout dhayanbad je apne yehen upyoogi website mithila ke log ke samrpit kelon
shankar
sha_shambhu@yahoo.co.in

शैलेन्द्र मोहन झा said...

Your each and every poems are really heart touching. Thanks

Rajiv Ranjan said...

कविता बहुत नीक लागल आ सच पुछि त आइ बेसी खुशी भेल चुकि, कविता वैह जे समाज,nature आ संगे व्यक्तियो के दरसावै. अखन धरि जे भी कविता लिखलहु बहुत बढिया लेकिन सब आत्म केन्द्रित छेलैह. अहां जे महसुस क रहल छेलहु उ छेलैह. लेकिन ई कविता उ छि जे अहांक आत्मा महसुस केलक. कियै की ई दर्द अहां पर नहि बितल अछि.
आब कनि ई कविता के बारे में बात कैयल जै, कविता बढिया अछि, अहि में कोनो संदेह नहि अछि.केशब जी स हम सहमत छि कि एहि में और धार के जरुरत अछि आ पद्मनाभ मिश्र स सेहो सहमत छि जे अपने पुरा कविता के सारांश अन्तिम लाईन में लिखने छि.
बेस अगिला पत्र में
अहांक
अमरजी

sourav said...

baad nik lagal. hamra sab ke samaj ke soch badle ke jarorat achi

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