दही-चूड़ा-चीनी सुनि के दू टा बात मोन पड़ैत अछि। पहिल तऽ तिल-संकराति में घरक पौड़ल दहीक संग घरक कूटल ललका चूड़ा आ दोसर हरिमोहन झाक लिखल खट्टर ककाक तरंग में एहि शीर्षक सऽ प्रकाशित दही-चूड़ा-चीनी के उतकृष्ट, अप्रतिम महिमा। ताहि सँ ई दूनू विषय के छोड़ि देल जाय। हमर जे शीर्षक सऽ संदर्भ अछि से श्राद्धक भोज से, जाहि में खैनिहार सभ दही-चूड़ा-चीनी के स्वादक तर में मुइल व्यक्ति के विसरि जेबा के कोशिश करै जायत छैथ।
ओना तऽ गाम में रहला पर बहुत रास भोज पैठ लागल हँ, मुदा जेकर हम वर्णन करै के लेल आतुर छी से ओनाही अखनि धर हमर मोन में तहियाएल अछि। तऽ चलु, हम परत दर परत एकरा खोलने चलैत छी आ अहाँ एकरा अप्पन मोन में तहिएने जाउ।
बघांत गाम में कियो वृद्ध सज्जन के देहावसान भऽ गेल। गँवारी भोजक न्योत देल गेल। हमरो गाम के हकार पड़ल छल से घर से किनकौ न्योत पुरनाई तऽ आवश्यक छलैक। भदैया लादने छलैक आ राति में भोज में जाय के योजना बनल। तय भेल जे गाम सँ चारि पाँच आदमी तऽ जेबाक चाही। से हम, हमर बाबूजी, मदन काका तैयार भेलियेक। जाय सऽ पहिने एकटा खवास सेहो चाही छल जे लालटेन आ लाठी (कुक्कुर सभ के खिहारे के लेल) लऽ के संग चलैत। बाबूजी रामप्रसाद के शोर पारि भोजक बात कहलखिन। ओ झट दऽ तैयार भऽ गेल। एहनो मौका कहुँ छोड़ै बला छलै। बड बेस, हम सभ अन्हार भेला के उपरान्त चलि देलियेक।
आब आगाँ के हाल सुनु। हमर गाम सऽ बधांत करीब एक कोस (तीन किमी) छल। आ गाम जाय के रास्ता बाध भऽ के जायत छल। सौसें दिन पानि पड़ल छलैक से हम सभ प्लास्टिक बला पनही (चप्पल) पहिर विदा भेलियेक। रामप्रसाद कनेक झक्खा के चलैत छल आ ताहि पर से पिछड़। तैं ओ आड़ि छोड़ि खेत में आड़िक काते कात हमरा सभ के लालटेन दिखाबैत लाठी रोपि रोपि चलऽ लागल। कुक्कुर तऽ नहि मुदा झींगुर सभक कीर्तन शुरु भऽ गेल छलैक। खसैत पिछड़ैत केहुना ठाम पर पहुँचलहुँ।
भोजक श्रीगणेश भऽ चुकल छल। अगिला बेर में हमहुँ सभ बैसे गेलहुँ। पात भिंजा के चूड़ा देल गेल। ताही पर धातृक, आमक, उसनल आलूक, तीसी आदि के दस रंग अँचार पड़ल। ओकर बाद आयल दही के बारीक जे एही कला में पारंगत बुझना जायत छलाह। ठेहुन पर दहीक तौला राखि, केहुनी तक हाथ तौला में दऽ के जे ढार दैत छलाह तऽ बुझु जे गंगा के प्रवाह सन पात पर पड़ैत छल। मोन मोहु मोहु भऽ गेल। जेहने बारीक, तेहने खवैया। दही पात पर खसैत देरी कि चट दन विला जाय। एतेक कष्ट उठा के भोज में एनाय सार्थक बुझायल। चूड़ा के छोड़ि दही पर हमर सभक विशेष कृपा भेल। तौला पर तौला खतम होइत गेल। हम सभ पेट सऽ तृप्त भऽ गेल छलियेक। तैयो मोन के तृप्ति में देर छल। फेर नवका तौला बहार कयल गेल। मदन काका बारीक के शोर करैत कहलखिन कि हुनके से नवका तौला दही के शुरुआत कयल जाय जाहि सँ छल्हिगर दही हुनका भेंटौ। बारीक महोदय हुनके से नवका तौला एहि बेर शुरू केलैथ। पात पर ठोसगर छल्हिगर दही खसल। ओहि में बथुआ के झुर्री जेकां किछ अस्पष्ट दृष्टिगोचर भेल। बुझायल जे कोनो तरह के अँचार फेंटा गेल छैक दहीक संग। अन्हार में कनेक शंका भेला पर मदन काका रामप्रसाद के लालटेन हुनका पात दिश करै लेल कहलथिन। एतबा सुनि कियौ भलमानुष अपन चोरबत्ती (टार्च) मदन काका के पात दिश लेसलखिन। ओहि प्रकाश में जे देखै छी तऽ एकटा बिछौती (छिपकली) मरल पड़ल अछि। मदन काका तामशे पित्त भऽ गेलखिन। भोज वाली बात आ ताहि सऽ जुड़ल घरवैया के प्रतिष्ठा। सभ गोटे मदन काका से हल्ला नहि करै के लेल खुशामद करै लगलाह। धर फर कऽ के जिनका जिनका ओही तौला सऽ दही देल गेल छल हुनका नव पात लगाओल गेल। हम मदन चाचा के बगले में छलहुँ आ छाली कटला के बाद दही हमरे में पड़ल छल। हमरो नव पात भेटल पर कि हिम्मत जे ओ दृश्य देखला के बाद किछु मुँह में जाय। चुपचाप उठैत गेलहुँ आ विदा भेलहुँ।
ओकरा बाद हमरा ध्यान नहि अछि जे फेर कहियो दही-चूड़ा-चीनी के भोज खेने हेबैक। पर जे किछ कहु, घर में अखनो धरि दही-चूड़ा-चीनी हमर प्रिय भोजन थिक।
ओना तऽ गाम में रहला पर बहुत रास भोज पैठ लागल हँ, मुदा जेकर हम वर्णन करै के लेल आतुर छी से ओनाही अखनि धर हमर मोन में तहियाएल अछि। तऽ चलु, हम परत दर परत एकरा खोलने चलैत छी आ अहाँ एकरा अप्पन मोन में तहिएने जाउ।
बघांत गाम में कियो वृद्ध सज्जन के देहावसान भऽ गेल। गँवारी भोजक न्योत देल गेल। हमरो गाम के हकार पड़ल छल से घर से किनकौ न्योत पुरनाई तऽ आवश्यक छलैक। भदैया लादने छलैक आ राति में भोज में जाय के योजना बनल। तय भेल जे गाम सँ चारि पाँच आदमी तऽ जेबाक चाही। से हम, हमर बाबूजी, मदन काका तैयार भेलियेक। जाय सऽ पहिने एकटा खवास सेहो चाही छल जे लालटेन आ लाठी (कुक्कुर सभ के खिहारे के लेल) लऽ के संग चलैत। बाबूजी रामप्रसाद के शोर पारि भोजक बात कहलखिन। ओ झट दऽ तैयार भऽ गेल। एहनो मौका कहुँ छोड़ै बला छलै। बड बेस, हम सभ अन्हार भेला के उपरान्त चलि देलियेक।
आब आगाँ के हाल सुनु। हमर गाम सऽ बधांत करीब एक कोस (तीन किमी) छल। आ गाम जाय के रास्ता बाध भऽ के जायत छल। सौसें दिन पानि पड़ल छलैक से हम सभ प्लास्टिक बला पनही (चप्पल) पहिर विदा भेलियेक। रामप्रसाद कनेक झक्खा के चलैत छल आ ताहि पर से पिछड़। तैं ओ आड़ि छोड़ि खेत में आड़िक काते कात हमरा सभ के लालटेन दिखाबैत लाठी रोपि रोपि चलऽ लागल। कुक्कुर तऽ नहि मुदा झींगुर सभक कीर्तन शुरु भऽ गेल छलैक। खसैत पिछड़ैत केहुना ठाम पर पहुँचलहुँ।
भोजक श्रीगणेश भऽ चुकल छल। अगिला बेर में हमहुँ सभ बैसे गेलहुँ। पात भिंजा के चूड़ा देल गेल। ताही पर धातृक, आमक, उसनल आलूक, तीसी आदि के दस रंग अँचार पड़ल। ओकर बाद आयल दही के बारीक जे एही कला में पारंगत बुझना जायत छलाह। ठेहुन पर दहीक तौला राखि, केहुनी तक हाथ तौला में दऽ के जे ढार दैत छलाह तऽ बुझु जे गंगा के प्रवाह सन पात पर पड़ैत छल। मोन मोहु मोहु भऽ गेल। जेहने बारीक, तेहने खवैया। दही पात पर खसैत देरी कि चट दन विला जाय। एतेक कष्ट उठा के भोज में एनाय सार्थक बुझायल। चूड़ा के छोड़ि दही पर हमर सभक विशेष कृपा भेल। तौला पर तौला खतम होइत गेल। हम सभ पेट सऽ तृप्त भऽ गेल छलियेक। तैयो मोन के तृप्ति में देर छल। फेर नवका तौला बहार कयल गेल। मदन काका बारीक के शोर करैत कहलखिन कि हुनके से नवका तौला दही के शुरुआत कयल जाय जाहि सँ छल्हिगर दही हुनका भेंटौ। बारीक महोदय हुनके से नवका तौला एहि बेर शुरू केलैथ। पात पर ठोसगर छल्हिगर दही खसल। ओहि में बथुआ के झुर्री जेकां किछ अस्पष्ट दृष्टिगोचर भेल। बुझायल जे कोनो तरह के अँचार फेंटा गेल छैक दहीक संग। अन्हार में कनेक शंका भेला पर मदन काका रामप्रसाद के लालटेन हुनका पात दिश करै लेल कहलथिन। एतबा सुनि कियौ भलमानुष अपन चोरबत्ती (टार्च) मदन काका के पात दिश लेसलखिन। ओहि प्रकाश में जे देखै छी तऽ एकटा बिछौती (छिपकली) मरल पड़ल अछि। मदन काका तामशे पित्त भऽ गेलखिन। भोज वाली बात आ ताहि सऽ जुड़ल घरवैया के प्रतिष्ठा। सभ गोटे मदन काका से हल्ला नहि करै के लेल खुशामद करै लगलाह। धर फर कऽ के जिनका जिनका ओही तौला सऽ दही देल गेल छल हुनका नव पात लगाओल गेल। हम मदन चाचा के बगले में छलहुँ आ छाली कटला के बाद दही हमरे में पड़ल छल। हमरो नव पात भेटल पर कि हिम्मत जे ओ दृश्य देखला के बाद किछु मुँह में जाय। चुपचाप उठैत गेलहुँ आ विदा भेलहुँ।
ओकरा बाद हमरा ध्यान नहि अछि जे फेर कहियो दही-चूड़ा-चीनी के भोज खेने हेबैक। पर जे किछ कहु, घर में अखनो धरि दही-चूड़ा-चीनी हमर प्रिय भोजन थिक।
15 comments:
Nice read.
Hamro ek ta ehne ghatna smaran padait achi, lekin okar charchaa nahiye karbaak uchit :)
Bahut badiya bahut badiya
Badd neek prayatn maithili blogging ker.. jaun uchit bujhi ta kani gyaan baantu je hum lokani kona maithili font use kariyai blogging lel..
राजीव जी,
मोन गदगद् भऽ गेल. चुड़ा दही चीनी. हमरा खुदे अपरतिव लागि रहल अछि बहुत दिन सँ किछु नaहि लिखलहुँ अछि. नहि लिखबाक कोनो विशेष बहाना नहि केवल आलस्य बुझु.
Respected Padmanabh Mishra ji,Rajeev Ranjan Ji, & Indrakant ji
Sabse pehlya ahan sab ke ete nick blog banab lel bahut bahut badhei.
Ona Humra sab mei sab kee dahi chura sei ate sneh kieya hoie chiee sae sodh ke bisay chiee [:D].
Per apan baat apan bhasa mei dekh kaa badh nick lagie chiee. ahen sab ke bahut bahut badhei, keep it up.
Bahut Neek Lagal Padhi ka...bahut din ke bad asgare men bahut hanslahun Ham akhan america me h1 par nokri ka rahal chhi.
Ajay Thakur
1-865-456-3491
Mon bahut prasanna bhel ranjan jeek chura dahi chini pdhika..bahu raas asgare men haslahun achhi...Dhanyawad...
ajay
1-865-456-3491
'Choora- dahi-cheeni' maithil sanskriti ker ektaa adbhud pehchaan/identity chhaik.Tain dahi mein maachhi/jhingur/girgit ityadi khasa kay ohi pehchaan mein chhed nahi karak chahi.Badee adauri,kumhrauri ,tilkor,sakrauri
paan, makhaan,patuaa saag, samdaaun, dahkan--ee sab hamar dharohar achhi--okar rakshaa ho.
"dahi, chura aur chini ek satwik bhojan thik. jaun alp maatra main niyamit roop san jalkhai kari, tahan pet sambandhi kono sikaayat nahi rahtah bauwa"....
mon parait achi, dalaan par, Umesh kaka dwara kayel gel chura, dahi aar chinik barnan......
adbhut.
bahut interesting lekh chalaye.maithili blog dekh ka bad neek lagal.congratulations & thanks for providing wih our own blog
bahut badhiya lagal,lagal rahoo.
doosab maithil dharm bujhu..jon bhar ke khaja neek t cahgera ka duslaun. kahu chra dahi bhoj se oopar gappey!!tahun mn ahan sab ka bichauti bheintal. Neek gapp maun nahih rahit chaye seho satya!! maithili mein bad aan aan bhasha ke shabd pryog dekh kani te maun tamsaye ya lekin kail ki ja...dheki matha par raikh gothulla mein jaarain taku ki gas baaru..lagal gaamey mein chee..aaiye bagiyya banwail...mudhi wali ainkh mein ail
badd neek lagal. ona dahi - chura hamro bar neek lagaiy ya. besh ta aago lagatar chalu rakhab. ona ta e sab padhike gaon ke bar mon parait achi. sange naak lagait achhi.
DHANYABAD,
AMAR KUMAR JHA.
चूड़ा दही चिनी मिथिला के सर्वप्रिय आहार छैक | जेहिना ई मैथिल लोकनि के प्रिय छैन्ह तहिना आन कीड़ा मकोड़ा के सेहो कियकि ओहो सब मिथिला वासी छैक |
bahut nik lagal humra padhke apan bihar ke kiyo saathi milal pardes mein
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