हमर जवानी'क एकटा तरँग
हमर जवानी'क किछु पाँति, भातिज लोकनि सुनए जाए जाओ...
आओर हमरा कहु.. ई कहीँ प्रेम गीत ते नहिँ
हम रोज अबितहुँ अहाँक घर,
यदी अहाँक घर सही ठाम पर रहितेक,
हमरा मालुम अछि जे अहुँ'क आँखि मे चन्द्रमा अँकुरित होयते
जहिना हम चौकैठ टपितहुँ
काठ'क पौने चारि टाँग'क कुरसी मे
अहाँ हमरा सरिया केँ चकरघिन्नी भऽ गेल रहितहुँ
आ चाह'क कऽप पकड़ेबाक कल मे
ईतिहास मे ई दोसर बेर दर्ज भेल रहिते
कि अहाँ हमरा छुई लेलहुँ,
कोनो दोसर केँ हमरा बारे मे बतेबा'क काल मे,
अहाँक ठोर मे कोन बात नुका जाइत अछि,
आब हम बुझे लागलहुँ अछि,
पछिला बीतल शताब्दि'क कोनो दिन कोनो एहेन पल नहिँ छलैक,
जखन,अहाँक घर आयबाक ठीम समय छल,
हमर घर सँ अहाँक घर अयबाक कोनो टा बाट भेटतैक,
हम कियैक हिचैकतहुँ,
रोज रोज अहाँक घर आबितहुँ
रोज रोज अहाँक घर आबितहुँ
अपने लोकनि'क खट्टर काका
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