
एहेन नहिं की अहीं टा हमरा सँ चिन्हार नहिं,
हमर अपन जिनगी सेहो हमरा सँ चिन्हार नहिं,
अन्हार सँ पुछि लेब हमर घर'क पता,
एहि शहर'क रोशनी हमरा सँ एखन चिन्हार नहिं,
खोखरि लेब कोनो दिन ओकर चेहरा सँ नकाब,
इ बनावटी सादगी हमरा सँ एखन चिन्हार नहिं,
काल्हि हमरा कहब अहाँ एहि युग'क मसीहा,
आई मानल जे इ सदी हमरा सँ एखन चिन्हार नहिं।
-------------------------------------------------
बच्चा
अपना बचपन सँ छलल गेल बच्चा
कोन एहेन गरल पी गेल बच्चा
आँगुर आब नहिं पकरैत अछि ओ
अपन पैर पर चलैत अछि बच्चा
की बुजुर्ग सन गप्प करैत अछि
स्वयं सँ आगाँ निकलि गेल बच्चा
छीनलक हिनकर मुस्की कियैक
समय के कियैक अधलाह लागल इ बच्चा
दोष ओकरा भला कोना दियैक
जेना ढालल ओ ढलि गेल बच्चा।
(नोट-एहि रचना केँ रचनाकार छथि श्री सुभाष चन्द्र जी। अपनेक घर अछि मधुबनी जिला अंतर्गत हरिपुर मझराही टोला (कलुआही), आ अहाँ श्री विघ्नेश झा'क सुपुत्र छी। अहाँ वर्ष 1995 में मैट्रीक उत्तीर्ण कयला के पश्चात अध्ययन'क संगे-संग पत्रकारिता क्षेत्र सँ जुडल छी। तीन साल धरि आकाशवाणी दरभंगा में कार्यक्रम सेहो प्रसारित कयलहुँ। एखन पिछला पाँच साल सँ नियमित रुप सँ दिल्ली में पत्रकारिता क्षेत्र में कार्यरत छी। सम्प्रति अपनेक हिन्दी पाक्षिक पत्रिका "प्रथम इम्पैक्ट" में कार्यरत छी। अपनेक एकगोट हिन्दी कहानी संग्रह "मुफ्त की चाय" प्रकाशनाधीन अछि आ मैथिली में कहानी संग्रह'क लेल रचना सभहक ओरियान में लागल छी।
सम्पर्क-
सुभाष चन्द्र,
13/ए, सी बी ब्लॉक, शालिमार बाग,
नई दिल्ली- 110088,
मो.- +91-98718 46705
ई-मेल- subhashinmedia@gmail.com )
9 comments:
पिछला टिप्पणी अपठनीय छल ताहि लेल डिलीट कय रहल छी। एहि मंच पर इ सुभाषजी'क प्रथम रचना अछि ताहि लेल हुनका कोटि-कोटि धन्यवाद। ग़जल'क चलन प्रायः उर्दू आ हिन्दी में अछि। मैथिली में एहि तरह'क प्रयोग प्रशंसनीय अछि आ सुभाषजी आब अहाँ सँ हमरा विशेष उम्मीद अछि। मैथिली'क उत्थान के लेल पद्मनाभजी द्वारा प्रारम्भ कएल एहि यज्ञ में अपनेक नियमित रुप सँ अपन रचना रुपी आहुति दैत रहु।
"कतेक रास बात" मंच के तरफ सँ अपनेक हार्दिक अभिनन्दन करैत छी।
सादर-सप्रेम
कुन्दन कुमार मल्लिक
सुभाष चन्द्र जी, अहाँक परिचय जे कुन्दन देने छथि ओही अनुसार जे अहाँक उमरि अछि जे झूठ बुझा रहल अछि, किएक तऽ जे भाव अहाँक कविता में अछि ओ बड्ड गहींर अछि आ ओ अनुभव मात्र से संभव अछि।
धन्यवाद एहि मंच पर अहाँक पहिल प्रस्तुति के लेल। आ कुन्दन जी, अहाँ सेहो धन्यवाद के पात्र छी सुभाष जी सन छुपल रूस्तम के हमर सभक समक्ष आनय के लेल।
सुभाष जी, अहाँक साहित्यिक भविष्य के लेल शुभकामना।
सादर,
राजीव रंजन लाल
rajeev jee,
Namaskar,
Sab sa pahine apan vichar debak lel dhanyabad.
rachna ke lel e jaruri nahi je anubhav swagat hoi. samaj mein anko dekhi ki anubhav hasil kail ja sakait chhi.
apnek
subhash
सब से पहिने त ई सुंदर प्रस्तुति हेतु रचनाकार आ अनुवादक दुन्नु के कोटिशः धन्यवाद ! ग़ज़ल सन मर्मस्पर्शी साहित्यिक विधा से मैथिली साहित्य के श्रृंगार करवा'क ई सत्प्रयास सर्वथा प्रशंसनीय अछि ! मुदा सांच कही त पहिल ग़ज़ल हमरा तेहन ने छायावादी बुझायेल, जे एखनो धरि एक्कर कथ्य बुझवा'क प्रयासे कए रहल छी ! हाँ, दोसरका रचना में रवानगी खूब नीक लागल आ कोनो विशेष मानसिक कसरत के आवश्यकता सेहो ने परल ! तें एक टा अनुरोध अछि जे एकरा आलोचना नै बुझि किछु विशेष उम्मीद'क प्रार्थना बुझल जाऊ !!
सधन्यवाद !!
बहुत नीक प्रस्तुती अचि, सुभाश जी के हुमर तरफ़ स कोति धय्नयवाद!
पिछला टिप्पणी केर त्रुति केर लेल माफ़ी चहैत ची, हिन्दी भाशा मे त्य्पे कर्बा केर आदत नयी अचि.
ee kabita hamara bad nik lagal.
aa ehane suwadkar kabita ke apeksha rakhane chhi.
Santosh Kumar Mishra
Subhash Ji ke koti koti dhanyavad.
vastutah Subhash ji ehi karane aur beshi dhanyavad ke patra chhathi je o ehi mithak ke door karwaake ke prayaash kene chhthi je GHAZAL sirf urdu aur hidi bhasha ke jaageer nahi achhi , Agar subhash ji san san rachnakar hamara sab hak maithil samaaj me chhathi ta o din door nahi je vishawa patal par Maithili ghazal ke seho pehchaan jaroor bhetat.
Dhanyavaad.
Chiranjeev Subhash
Ahank bebakipan kein samarpit kavita padhlon. Nik aichh. Sundar prayas. Aihn nae chhei ki hummein aahank ee nav rachna padhlon. Kai patr-patrikam aahank padhtein rahet achhi.
Samajak vikas kein lel ee sab hobak chahi.
Hamro Aashirwad.
Udayesh Ravi
Udayeshravi@gmail.com
Post a Comment