फूलकुमारि-९९८६०६३७९८ (कहानी)

आई एहि बात’क तेसर दिन छल. तीन दिन सँ क्रमशः ओएह आदमी’क फोन. दिन’क एगारह बजे’क टाइम जहिना मालती’क बाबूजी आफिस जाइथ ओएह अनाम आदमी’क फोन’क घँटी फेर सँ बजि गेल. फोन’क दोसर दिस सँ फेर सँ ओएह प्रश्न पुछल आ मालती’क ओएह जवाब छलन्हि... रोन्ग नम्बर. फोन करय वाला अजीब प्रकृति’क छल. तीनो दिन फोन पर पुछलक जे रामबाबू हैँ क्या? मालती’क जवाब, रोन्ग नम्बर सुनि के फोन पर बाजे वाला व्यक्ति जवाब दैथि, "आई एम वेरी सोरी, सोरी अगैन". मालती केँ तीनो दिन मे सँ एको दिन ई नहि बुझि मे एलन्हि जे ओ व्यक्ति चाहैत की छल? एक्के नम्बर पर तीन दिन फोन केलक. ओना तऽ शहर मे कतेको लुच्चा लफँगा रहैत छैक. मुदा ओहि आदमी केँ हठाते लुच्चा-लफँगा सेहो नहि कहल जा सकैत छल. ओहि आदमी’क बात सँस्कारित लागैत छल. बहुते अदब सँ कहैत छल "आई एम रीयली सौरी?"

ओना तऽ आई-काल्हि किनको समय नहि रहैत छैक, ओहु मे हमरा, साफ्टवेयर कम्पनी मे काज करबाक कारणे समय’क बहुत आभव रहैत अछि. अपन रचना केर सम्पादन के समय नहिँ भेटैत अछि. एखन स्काटलैन्ड’क एडिनबर्ग शहर आयल छी. पर्याप्त समय अछि अगिला ५ दिन तक. एहि मे बहुत काज निपटा देब. फेर सँ बँगलोर पहुँचला’क बाद नहि जानि समय नहि भेटय तऽ? कतेक रास बात मे प्रकाशित रचना यदि अपने लोकनि केँ नीक लागल तऽ टिप्पणी द्वारा सूचित करी, एहि सँ लेखक’क उत्साहवर्धन होयत.




बात आएल गेल खतम भऽ गेल. मुदा एक महीना बाद फेर सँ ओहि आदमी’क फोन आयल ठीक एगारह बजे. मालती जखन फोन पर हेलो’क आवाज सुनलथीन्ह ते एके बेर मे चिन्ह गेलीह. मुँह सँ निकलय वाला छलन्हि "रोन्ग नम्बर". मुदा दोसर दिस सँ शुद्ध मधुबनी वाला मैथिली मे आवाज आयल, "एहि बेर कोनो कोनो रोन्ग नम्बर नहि अछि. एहि बेर हम केवल एहि लेल फोन केलहुँ जे एक महीना पहिने हमर होस्टल के धोबी कपड़ा लऽ के बहुत दिन सँ गायब भऽ गेल छल. ओ अपन पड़ोसी के नम्बर देने छल हमरा लोकनि केँ, मुदा हम ओहि नम्बर केँ नोट करबा मे गलती कऽ देने छलहुँ. धोबी के पड़ोसी के नम्बर’क बदला मे अहाँक नम्बर लिखि नेने छलहुँ. तेँ धोबी के बदला मे अहाँ के नम्बर लागि जाइत छल. आई धोबी हमरा लोकनिक हास्टल आयल छल आ सबटा कपड़ा वापस कऽ देने अछि. वास्तव मे धोबी बीमार पड़ल छल आ हमरा लोकनि केँ कपड़ा नहि दऽ रहल छल. सोचलहुँ आई अहाँ के सच सच बता दी. नहि जानि हमरा बारे मे अहाँ की सोचैत होयब."



फोन पर एके सँग एतेक सफाई सुनबाक बाद मालती के भेलन्हि जे फोन पर बात करय वाला यूवक सँस्कारित छलैथ. ओ पुछि देल्थिन्ह, अहाँ कोन होस्टल’क बात कऽ रहल छी, मतलब कोन हास्टल सँ फोन कऽ रहल छी?

उम्हर सँ जवाब आयल, "जी हम सी.एम. साईन्स कालेज’क होस्टल सँ बात कऽ रहल छी"
नहि जानि किएक मालती केँ भेलन्हि जे किछु आओर बात करक चाही. ओ पुछल्थिन्ह, "अहाँ ओतय पढैत छी की?"

"जी, पढबो करैत छी आ नहियोँ पढैत छी, मतलब ई की हमर फीजिक्स आनर्स के अन्तिम वर्ष’क पढाई खतम भऽ गेल अछि परीक्षो भऽ गेल अछि. आब प्रैक्टिकल’क परीक्षा के बाट ताकि रहल छी. अहाँ के एक महीना पहिने जे फोन केने छलहुँ तखन हमर थ्योरी पेपर चलैत छल" मालती केँ उम्हर सँ विस्तृत वर्णन भेटलन्हि.

मालती कहय लागल्थिन्ह, "हमहुँ इकोनोमिक्स आनर्स के परीक्षा देलहुँ. हमहुँ रिजल्ट’क बाट ताकि रहल छी"

फोन’क दोसर दिस सँ बात करय वाला यूवक चुप छलाह. मालती पुछल्थिन्ह, "एकर बाद की करक विचार अछि?"

"सीधे सीधे नौकरी, हम एहीठाम एहि हास्टल मे रहि आगू एक साल तैयारी करब" यूवक’क जवाब छलन्हि.

यूवकक जवाब ते भेटि गेल छलन्हि. मुदा मालती इकोनोमिक्स आनर्स के बाद की करतीह से हुनका बुझल नहि छलन्हि. करबा’क बहुत किछु मोन करैत छलन्हि. मुदा समाजिक आ पारिवारिक स्थिति एहेन छलन्हि जाहि हुनका केवल बाट ताकनाई छलन्हि जे कहिया हुनकर बाबूजी कोनो योग्य लड़का केँ ताकि केँ आनितथि आ विवाह’क बाद घर गृहस्थी’क मे अपना आप केँ समर्पित कऽ देतैथि. स्त्री भेला’क बाद बहुत बेसी करबा’क हिम्मत सब लोकनि मे नहि होइत छैक. आ मालती एहने लोक’क श्रेणी मे आबैत छल्थीन्ह. हुनकर अन्दर मे भावना उमड़ैत छलन्हि जे ओहो ओहि यूवक के कहतथि जे ओहो नौकरी’क तैयारी कऽ रहल छथि. मुदा पारिवारिक स्थिति’क अनुसार हुनका केवल बाट ताकनाई छलन्हि जे हुनकर बाबूजी कहिया कोनो योग्य वर ताकि के आनताह.

नाहि जानि किएक यूवक सँ फोन पर बात कऽ हुनका मोन मे शाँति आ अशाँति’क दुनू’क भाव उत्पन्न भेलन्हि. अशाँति एहि लऽ केँ जे ओ अपन कैरियर केँ आगू नहि बढा सकैत छलथीन्ह, आ शाँति एहि लऽ के जे ओ यूवक सँ बात करबा मे हुनका बहुत नीक लागललन्हि. मोन मे भलन्हि जे कहि दैथि जे फेर सँ फोन करब. मुदा पारिवारिक आ समाजिक स्थिति फेर सँ हुनकर आगू मे ठाढ़ छलन्हि. फोन काटय सँ पहिने एके टा शब्द मूँह सँ निकललन्हि, "बाय! टेक केयर". दुनू गोटे लगभग एक घँटा बात केने होयत मुदा नहिँ तऽ ओ अनाम यूवके आ नहि मालतीये के हिम्मत भेल जे एक दोसरक नाम पूछी.

समाय बीतल मुदान नहि जानि किएक मालती केँ एहि अन्जान यूवक सँ फेर सँ बात करबाक मोन करैत छलन्हि. प्रत्येक दिन एगारह बजे ओ ड्राइँग रूम मे फोन’क आस पास भटकैथि. फोन’क बाट ताकैत ताकैत. मुदा फोन नहि आयलन्हि. ओकर एक महीना बाद फेर सँ एक दिन ठीक एगारह बजे फोनक घँटी बाजल. मालती’क अपेक्षा आई फेर पूर्ती भेल. फोन फेर ओएह अनाम यूवक’क छल. हेलो कहबाक औपचारिकता’क बाद यूवक कहल्थिन्ह, "आई नहि जानि किएक अहाँ सँ बात करबाक मोन भेल. तेँ फोन कयलहुँ. कहीँ अहाँ खराप तऽ नहि मानि रहल छी. की हम अहाँ सँ बात कऽ सकैत छी?"

"जी, हमरा बुझने अहाँ सभ्य आ सँस्कारित छी, बात करबा मे कोनो हर्ज नहि, बल्कि हमरो अहाँ सँ बात करबा मे नीक लागैत अछि?" मालती हुनका जवाब मे कहल्थिन्ह.

"नहिँ किछु तऽ दोस्ते बुझि लिअ", यूवक’क प्रत्यूत्तर छलन्हि.

ओहि दिन ओ दुनू लोकनि कम सँ कम डेढ़ घँटा बात केने होयत. बात जेना सठबाक नामे ने लिअ. गाम घर’क गप्प, राजनीति’क गप्प, पढ़ाई-लिखाई आ कैरियर’क गप्प आ नहि जानि कतेक गप्प. जतेक गप्प करैथि ओतेक आओर फुरन्हि. एत्तेक देर गप्प कयलथि दुनू आदमी मुदा एक दोसर’क नाम पुछि नहि सकलथिन्ह.

फेर सँ अगिला दिन यूवक’क फोन आयल. ओएह एगारह बजे. एहि बेर ओ पुछल्थिन्ह, "जी अहाँ सँ हम एत्तेक गप्प कयलहुँ मुदा अहाँक नाम नहि पुछि सकलहुँ. ओना मालती से हुनका सँ इएह प्रश्न करय चाहैत छलीह. मुदा ओएह समाजिक बँदिश आ पारिवारिक मान्यता’क आगू ओ अपन भावना के नुका लैत छलीह. मुदा प्रश्न एखन ओहि अनाम यूवक दिश सँ भेल छल तेँ मालती केँ किछु नहि किछु उत्तर देबाक छलन्हि. सही उत्तर ओ दऽ नहि सकैत छलीह. मोन मे छलन्हि हो न हो किनको बुझि मे आबि जाए जे मालती एक अनजान यूवक सँ प्रत्येक दिन बात करैत छथि. भऽ सकैत छलन्हि जे ओकर बाद हिनका उपर मे लोक शक करन्हि. ओना मालती’क मोन मे कोनो आओर बात नहि, केवल ओहि अनजान यूवक सँ बात करबा मे नीक लागैत छलन्हि, मुदा एहि बात केँ किओ बतँगर नहि बना दिअ ताहि लेल ओ कोनो रिस्क नहि लेबय चाहैत छलीह. एकरे कहल जाइत छैक समाजिक बँदिश आ परिवारिक मान्यता. सब किछु सोचल विचारल पहिने सँ छलन्हि. एहि प्रत्येक बात’क विश्लेषण ओ पहिने सँ कय नेने छलीह तेँ कहलथिन्ह, " से हमर नाम बुझि के अहाँ की करब?, की बिना नाम बुझने अपना लोकनि एक दोसर के दोस्त नहि बनि सकैत छी?"

"हँ सत्ते से नाम बुझि के हम की करब, मुदा जँ अहाँ हमरा फोन पर गप्प करबाक अनुमति दऽ देलहुँ ते हम किछु नाम सँ अहाँ के बजायब कि नहि?" यूवक’क प्रश्न छलन्हि.

ताहि लेल किछु नाम दऽ दिअ, जेना हम अहाँ केर नाम दऽ दैत छी, अनाम जी, आई सँ हम अहाँ के अनाम जी कहि केँ बजायब, कहु मँजूर अछि की नहि?" मालती’क जवाब छलन्हि

"जी अहाँक देल नाम हमरा बिल्कूल मँजूर अछि, आ यदि अहाँ अपन नाम नहि बतेलहुँ ते हम अहाँ’क नाम राखि दैत छी, फुलकुमारी, " यूवकक प्रतिक्रिया एहि तरह सँ निकलल

ओ अपन बात आगू कहैत बजलाह, "ओएह फूलकुमारी, दूसरा क्लास’क किताब फुलकुमारी, जिनका हँसला सँ फूल खिल जाएत छलन्हि आ जकरा उदास भेला पर सब किओ उदास भऽ जाइत छल, आदमी कोन, फूल पत्ती, जानवर सब किओ"

यूवक गम्भीर छलाह, "पुछलथिन्ह, की कहु हमर देल गेल नाम फुलकुमारी नीक लागल की नहि?"

मालती एहि बेर खिलखिला के हँसि देलथिन्ह, कहलथिन्ह, "बेस अहाँ’क देल गेल नाम हमरा नीक लागल, मुदा हम एकटा तुच्छ प्राणी, हमरा हम ओहि फुलकुमारी जेकाँ नहि छी, हमरा ते बुझलो नहि अछि जे हमर हँसला सँ कि हमरा उदास भेला सँ किनको उपर मे प्रभाव पड़ैत छन्हि की नहि?"

यूवक’क उत्तर छलन्हि, "हमहुँ नहि कहि सकैत छी जे बाँकी लोकनि के की होएतन्हि अहाँक हँसला सँ, मुदा यदि अहाँ हँसब तऽ हमरा बहुत नीक लागत"

बिल्कूल गुणा-भाग काएल जवाब. मालती के भेलन्हि ई यूवक केवल बजबेटा मे चतूर नहि छथि बल्कि हुनकर बुद्धि से कुशग्र छन्हि. ओ अपन सीमा के बहुत बढ़ियाँ सँ जानैत छथि. कतेक बजबाक चाही. मुदा हुनका भीतर सँ मोन छलन्हि जे यदि यूवक अपन सीमा सँ कनिएँ बाहर आबि जेताह ते हुनका नीके लागतन्हि. समय बीतल जा रहल छल. यूवक समय समय पर कोनो ने कोनो बहाने मालती के फोन करैथि आ मालती के सेहो नीक लागन्हि.

बहुत दिन’क बाद मालती केँ एक बेर अनामजी’क फोन से आयल. कहय लागलैथि जे ओ आब होस्टल छोड़ि केँ जा रहल छथि. हुनका दिल्ली मे कोनो सरकारी नौकरी लागि गेल छन्हि. जाइत जाइत ओ यूवक मालती केँ अपन अफिस के टेलीफोन नम्बर दऽ देल्थिन्ह.

नहि जानि किएक ओहि दिन मालती केँ बहुत दू:ख भेलन्हि. मुदा कोनो अपायो नहि छल इएह सोचि के ओ अपन ध्यान दोसर दिस देबय लागलीह. समय प्रत्येक घाव’क मरहम होइत छैक. ई स्टेटमेन्ट देबा मे दुनियाँ’क प्रत्येक आदमी अपना आप केँ आन्स्टीन सँ कम नहि बुझैत छथि. बल्कि ई कहु जे यदि कोनो जन साधरण आइन्स्टीन’क सिद्धान्त पर अपन समीक्षा लिखबाक प्रयास करताह तऽ सभ’क समीक्षा’क एक्के परिणाम होयत. जे आन्स्टीन समय’क सापेक्षता के बुझबा मे समयक औषधि गुण केँ बिसरि गेलाह. समय मालती केँ औषधि प्रदान केलक आ मालती फेर सँ अपन दैनिक चर्या मे लागि गेलीह.

किछु आओर समय बीतल. आ मालती’क बाबूजी मालती’क लेल एकटा योग्य वर ताकि आनलाह. वर सरकारी नौकरी करय वाला आ दिल्ली मे स्थापित छला.
मालती’क तेसर जिन्दगी शुरु भऽ गेल छल. हुनकर पतिदेव एकटा मेधावी आ महत्वाकाँक्षी व्यक्ति छलाह. प्रत्येक शनि रवि केँ दिल्ली’क कोनो ने कोनो ऐतिहासिक जगह पर घुमए लऽ जाइत छलन्हि. आ दू-तीन महीना पर छुट्टी लऽ केँ कोनो ने कोनो रमनीय स्थान पर घुमबाक लेल. नैनिताल, मसूरी आ शिमला भ्रमण ओ कएक बेर कऽ चुकल छलीह. गृहस्थ आश्रम मे प्रवेश केलाक किछ दिन तक हुनकर बहुत सुखमय छल.

समय फेर सँ करट बदललक आ मालती केँ मातृत्व सुख भेटलन्हि. मातृत्व सुख पहिने नीक लागलन्हि. पतिदेव से मदद मे हाजिर रहैत छलन्हि, मुदा कालक्रम मे पति’क महात्वाकाँक्षा मदद मे कम करैत गेलन्हि. बाद मे घर गृहस्थी आ बाल बच्चा के सम्हारबा मे मदद’क नाम पर किछु नहिँ भेटन्हि. अपितु आफिस सँ घर एला पर एक सौ तरहक डीमन्ड. मालती’क पूरा समय खाना बनेबा मे, बच्चा सभ के स्कूल आ ओकर बार हुनका लोकनि केँ होम-वर्क करेबा मे बीति जाइत छलन्हि. एको क्षण’क फूर्सत नहि. गृहस्थ जीवन कठिन होइत छैक, मुदा एत्तेक कठिन से नहि बुझल छलन्हि. एकटा सवाल हरदम मोन मे उठैत छलन्हि जे गृहस्थ जीवन केवल गृहणी’क लेल किएक कठिन होइत छैक.

दिन भरि घर मे उलझल रहला’क बाद साँझ मे हुनका अपन पतिक मुँह सँ दू टा मधूर वचन सुनबाक पूर्ण अधिकार छलन्हि. ई एहेन अधिकार छल जे हुनका पति के अपने आप बुझना चाही. मुदा साँझ के हुनकर पति’क एला’क बाद किछु ने किछु झँझट भऽ जान्हि जाहि सँ हुनकर जीवन नरक समान लागय लागन्हि. हुनकर पति ते तखन हद कऽ देथिन्ह जखन ओ हिनका उपर मे आरोप लगाबैत छलन्थिन्ह जे अहाँ दिन भरि बैसि के बीतबैत छी आ हम खैटि के पैसा कमाबैत छी. हिनका लऽग मे कोनो तर्क नहि छलन्हि जाहि सँ ई साबित कऽ सकैत छलीह जे ओ घर मे रहि केँ हुनका आफिस सँ बेसी काज करैत छलीह.

समय बीतला पर स्थिति आओर खराप भऽ गेल छल. मालती’क प्रकृति जे हँसय खेलय वाला रहन्हि ओ आब चिड़-चिड़ापन जेकाँ भऽ गेल छल. हरदम मालती केँ होइत छलन्हि जे एहि सब बातक लेल जिम्मेदार सिर्फ हुनकर पति छथि. ओ अपन पति सँ नहुँए नहुँए बात-चीत कम करैत जाइत छलीह. हुनका कोनो दोसर उपायो नहि छलन्हि. हुनकर अपन पतिक सँग वाला सम्बन्ध केवल नामे टा’क लेल रहि गेल छलन्हि. आ ओहु मे दिल्ली मालती’क लेल अन्जान जगह छलन्हि. घर’क काज करबाक बाद मे किओ एहेन लोक नहि छलन्हि जिनका सँ नीक-बेजाय बात कऽ सकैत छलीह.

हतोत्साहित भेल मालती केँ जीवन सँ केवल निराशा हाथ लागल छल. उद्वेलित मोन केँ शाँत करबाक कोनो ने कोनो उपाय ताकैत रहैत छलीह मुदा भेटलन्हि नहि. अचानक एक दिन हुनका विवाह सँ पूर्व टेलीफोन पर बात करय वाला यूवक के याद आबय लागलन्हि. मोन मे अपन घरवाला आ ओहि यूवक मे तुलना शुरु करैत छलीह ते होइत छलन्हि कतय एक आदमी सँ बात करला सँ एत्तेक मोन’क शाँति आ कतय इम्हर दोसर आदमी जिनका लग बात करबाक टाइम नहि छलन्हि, आ यदि कहियो सँयोगवश बात यदि भऽ जान्हि ते बिल्कूल रोड़ा जेकाँ. एक आदमी जे एत्तेक अदब सँ बात करैत छल आ दोसर अछि जिनका बात करबाक कोनो तमीजे नहि रहन्हि. एक आदमी जे हिनका हँसबा’क लेल प्रेरित करैत छलन्हि आ दोसर आदमी जिनका मालती’क हँसी नामन्जूर छलन्हि. एक आदमी से मिश्री सन गप्प करैत छलाह आ दोसर आदमी जिनका फुसफुसाहट मे सेहो काँट गड़ल रहैत छलैक. एक मधु दोसर बिढ़नी, एक रसगुल्ला दोसर मड़ुआक रोटी, एक कोजागरा’क इजोरिया राति दोसर ज्येष्ठ-अषाढ़क रौद. मोन मे होइत छलन्हि जे कतहुँ भागि जैथि, मुदा दुनू-टा धिया पूता के सोन सन मुँह देखि किछु उपाय नहि सुझि रहल छलन्हि.

समय बीतल आ मालती’क ध्यान ओ अनाम यूवक दिस रहय लागलन्हि. तबय धरि मे एक दिन मोन पड़लन्हि जे ओ यूवक जाइत जाइत अपन आफिस के फोन नम्बर देने गेल छलाह. मोन मे होइत छलन्हि जे एतेक दिन बात फोन नम्बर जरूर बदलि गेल होयत. फेर सोचलथि जे एक बेर कम सँ कम कोशिश करबाक चाही. कोशिश करबा मे कोनो हर्ज नहि. कम सँ कम महीना मे एक दिन बात भऽ जायत ते कतेक दिन’क सुख भेटत.


एहि कथा’क बाँकी हिस्सा हमर पोथी "भोथर पेन्सिल सँ लिखल" मे देल गेल अछि. पोथी’क बारे मे विशेष जानकारी आ कीनबाक लेल प्रक्रिया निम्न लिन्क मे देल गेल अछि. http://www.bhothar-pencil.co.cc/ .
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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...