बहुत दिन स हम अहि ब्लॉगक एक गोट निश्क्रिय सदस्य बन गेल छलहू | कारण एक ता समयक अभाव छल, दोसर किछू नव लिखबाक इच्छा हर बेर कलम थमा जाई छल| आई बहुत दिनक बाद कीछ समय भेटल ता अपने सभक समक्ष एक गोट प्रेम गीत प्रस्तुत कॅ रहल छी|
"इज़ोरिया राति में चंद्रमाक साथ,
पोखरिक भीड़ पर हाथ धेने हाथ;
किछू कहबाक मोन, मुदा बौक भेला 'बाल';
प्रेयसीक संग जेना व्यूह, कोनो जाल|
कतेक जन्म आहांक हम तकलहू अछी बाट,
संग आजू भेल सखी युगो-युगक बाद|
बिसारी दिय आई लोक-वेद आ समाज,
मिलाउ हमर प्रार्थना स आहा केर नमाज़|
प्रेम केर गीत सखी, प्रेम केर साज़,
प्रेमहि थिक धराक एही रंग केर राज़|
कतेक रास बात एहेन कतेक रास बात,
कहैत आ सुनैत भेल जाई अछि देखु प्रात||"
9 comments:
शब्द भाव संयोग सँ बनल नीक अछि गीत।
बाल बौक बनला कियै संग जखन अछि मीत।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
Balchan Bhaiya, Geetak lekhan hamar priye lagal
प्रेम केर गीत सखी, प्रेम केर साज़,
प्रेमहि थिक धराक एही रंग केर राज़|
e panti bad anmol achhi. Aasha je ahina likh - likh k hamar sab k padaiy k maika di.
Namaskar
Manish
सुमन जी :
'बाल' आजु तृप्त छथि, प्रेम में निर्लिप्त छथि,
मुह स की बजता, आई भाव मे उन्मत्त छथि!!
मनीष जी : बहुत धन्यवाद... सक्रिय हेबाक हम आब पूरा कोशिश करब.
Katek raas ayal hamra ahan ke ee rachana se ki kahu shabd kam pair rahal aichh. sangeetmay mahaul creat karai ke lel ati abhari chhi ahan ke.
sandeep kumar (pankaj)
मन, वचन, कर्म स जहाँ प्रेमक पांति लिखल जायत अछि त एहने सुन्नर सृजन होइत अछि.
मनीष जी,
भने कतको दिन अज्ञात-वास मे रहू, मुदा आऊ त' एहने ह्रदय-स्पर्शी रचना ल' क' !!
बड़ नीक लागल....... जौं भाव मे प्रेम अछि तहन टीका-टिपण्णी के कोन गुंजाइश... !!
अपनेक अगिला रचनाक प्रतीक्षा रहत !!!
"इज़ोरिया राति में चंद्रमाक साथ,
पोखरिक भीड़ पर हाथ धेने हाथ;
किछू कहबाक मोन, मुदा बौक भेला 'बाल'; प्रेयसीक संग जेना व्यूह, कोनो जाल|
कतेक जन्म आहांक हम तकलहू अछी बाट,संग आजू भेल सखी युगो-युगक बाद|
bahut sundar
सबसँ पहिने टिप्पणी पर टिप्पणी. हमर इशारा केशव जी’क (करण समस्तीपूरी)’क टिप्पणी दिस अछि. "जौं भाव मे प्रेम अछि तहन टीका-टिपण्णी के कोन गुंजाइश"
हमर रचना पर तखने अपन प्रतिक्रिया देब जखन "मनीष जी"’क दोसर रचना आयत. जखन एहि वेबसाइट’क शुरुआत केने छलहुँ तखन मनीष जी "फाउन्डर मेम्बर" छलाह, ओकर बाद नहि जानि बिसरि गेलाह. कमसँ कम एत्तेक उपराग’क हमरा अधिकार तऽ अछिए.
कतेक रास बात, एहेन कतेक रास बात,कहैत आ सुनैत भेल जाई अछि देखु प्रात
"कतेक रास बात" मे प्रेमक कतेक रास बात, एहि सँ बेसी की कहू?
बालचन जी,
यायावर जी त' उपराग सुना गेलथि मुदा हम की कहू कियैक हम त' अपनहुँ व्यवसायिक व्यस्तताक कारणेँ कतेको दिन सँ पडायल रही। एहिना सदिखन उत्कृष्ट रचना संग आबैत रही तकरे आस।
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