बाट पर खसल मोरक ओस पर
हम लिखि रहल छी, तोहर नाम
मूल कवि- श्री के. सच्चिदानन्दन,
मैथिली अनुवाद- श्री सुभाष चन्द्र
जेना, पहिनहुँ कोनो कवि
लिखने छल नाम- स्वतंत्रता केँ
हरेक वस्तु पर।
तोहर नाम लिखय लागी त'
मिटेनाय कठिन भ' जेतय
धरती आ आकाश पर
क्रान्तिक संग
प्रेमक लेल सेहो स्थान छै
मलयालम कें प्रख्यात कवि के.सच्चिदानंदनक कविता कें पंजाबी में अनुवाद डा. बनीता कएलीह,जे ‘‘पीले पत्ता का सपना’’शीर्षक सँ पुस्तक रूप में साहित्य आकादमी, दिल्ली द्वारा वर्ष 2003 में प्रकाशित भेल। ई कविता एहि पंजाबी कविता संग्रह सँ लेल गेल अछि, जकर पंजाबी सँ हिन्दी अनुवाद "सुभाष नीरव" कएलाह। मैथिली में कविताक अनुवाद हिन्दी सँ कएल गेल। श्री. सच्चिदानंदन साहित्य अकादमी कें सचिव रहि चुकल छथि आ हिनक बहुत रास कविताक अनुवाद भारत आ विश्वक कतेको भाषा में भ' चुकल अछि।
तोहर नामक सजौट पर
सूति रहल ही हम
तोहर नामक चहचहाटक संग
जागैत छी हम
जतय-जतय हम स्पर्श करैत छी-
उभरैत अछि तोहर नाम
झटैत पात कें घसमैल रंग पर
पुरान गुफाक स्याह दीवार पर
कसाईक दोकान कें केवाड़ पर
भीजल रंग पर
नबका स् पर
चांदनी के फड़फाइत पाँखि पर
कॉफी आ नून पर
घोड़ाक नाल पर
नर्तकी केँ मुद्रा पर
मधु औ विष पर
नींद पर, रेत पर, जड़ि पर
फाँसीक तखत पर
मुर्दाघर के सर्द जमीन पर
“मसान-शिला के चिक्कैन पीढ पर।
2. हमरा कि बूझ
हम दूनू बच्चा छीं
जे माय-बापक खेल बेल रहल छी-
जानैत नहि छी- आलिंगनक अर्थ
हमरा कि बूझल चुम्माक विद्युतमयी प्रवाह
बस, एहिना स्पर्श कय लैत छी
किछु पात...
किछु फूल...
किछु फल...
बड्ड ममतांक संग निहारैत अछि प्रकृति हमरा
जिनगी में ठसाठस मरल
वं”ा- तृ’णा कें
मद्धिम लौ कें
अमर होबाक एहि
अर्थहीन इच्छा में
सुनू....
राति आँगन में दौडै़त चलि जा रहल अछि।
2 comments:
रचनाक शिल्प वा कथ्य के की समीक्षा करी, वो त' उत्कृष्ट ऐछे मुदा सभ सओं अद्भुत अछि ई प्रयास ! देखिअऊ, सांचे ने कहल गेल छैक जे साहित्य देश आ कालक सीमा सओं निर्बंध होइछ. श्री सच्चिदानंद जी के मलयालम में लिखल ई कविता पंजाबी, हिंदी होएत मैथिलि तक मे अप्पन अनुपम छटा बिखराबए में कोनो कसरि नहि छोडलक ! " कतेक रास बात" मे एक टा आओर मील स्तम्भ !! पूरा टीम बधाई के पात्र छी !!!!
kavitaa uchchy koti k achhi. hamaraa ta tesar ber padhla par arth kichhu kichhu bujhail.e hamar dosh chhi. muda kavitaa k mantavy bahut nik achhi.
ahank
amarji
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