सुभाष जी - सब्द संकलन बर निक लागल! मुदा एकर अर्थ बुझनाई सब के लेल मुश्किल अछि! अपन बात कही त- सच में कविता बर निक छल! मिथिलाक निम्न पाठक बर्ग के नेत्रित्व करैत अपनेक शुभकामना !
नीक कविता संगहि जंऽ नीक लागे तऽ एक टा गप्प कही कविता मे उरॊज शब्द खटकल साहित्य मे एहि शब्द केर प्रचलन सुंदरताक प्रतीक लेल हॊइत छैक सामाजिक विद्रूपताक वर्णण करैत काल लॊग एहन प्रयॊग अज्ञानता वश करैत अछि अन्यथा सायाश सायाश केर कॊनॊ जरूरति बुझना नहि जाइत अछि तें ध्यान दी शब्द चयन मे अतिरिक्त सावधानी आवश्यक नहि तऽ अहां केर कवित क्यॊ किएक पऽढत जं अहां कविता लिखैत काल गंभीरता नहि देखेबै कविता आ पाठकक प्रति तऽऽऽऽऽ एखन तऽ उत्साहवर्धन !!!
अहांके ओहि महिला के केहन रूप प्रस्तुत करबाक अय से तऽ अहिं जनबए ने की अहां ओहि औरत कें मनुष्य के स्तर सं खसा देबऽ चाहैत छी सामान्य जीवन आ अधिकार संऽ वंचित भऽ लॊक जानवर सन भऽ जाइत अछि से तऽ अहूं के बूझल हैत तें हम कहैत छिएक जानवर सन जीवन या जानवर सन व्यवहार गाम में सुनने हॊएब बहुत भदेस भाषा में कहैत कॊनॊ जनी के फलां के चुची में दूधे नहि उतरलै एहि शब्द मे विलक्षण अर्थ छैक ई एकहि संग अभाव-विद्रूपता-मानवीय क्षरण-अशॊभन दृष्टि सामाजिक वा ईश्वरीय अन्याय सब किछु व्यक्त कऽ दैत छैक
कहल जाएत छैक जे कोनो रचना पर भेला आलोचनाक उचित जबाब होय छैक अगिला रचना। कहय के तात्पर्य इ जे अपनेक पिछला रचना जाहि तरहेँ आलोचना भेल छल ओकर नीक जबाब लय के अहाँ अयलहुँ। नीक रचना आ संगे-संग श्री विवेकानन्द जीक सुझाव सेहो विचारणीय।
सुभाष जी, बिना लाग लपेट कही त' हम्मर दृष्टि में ई अपनेक एखन धरि के सर्व श्रेष्ठ कविता थीक ! वस्तुतः विद्रूप यथार्थवादी लेखन !! मुदा हाँ, एहि तरहक लेखन हेतु शब्द-चयन बड़ सतर्कताक आवश्यकता रहैत छैक ! तें विवेकानंदजी कें सुझाब अहांक कविता पर सोन में सुगंधक काज करत !! प्रतीक्षा अछि अगिला रचनाक !!!
7 comments:
सुभाष जी - सब्द संकलन बर निक लागल! मुदा एकर अर्थ बुझनाई सब के लेल मुश्किल अछि! अपन बात कही त- सच में कविता बर निक छल! मिथिलाक निम्न पाठक बर्ग के नेत्रित्व करैत अपनेक शुभकामना !
शिवेश झा "शिव" (मैथिलि नाटककार)
मुद्दा गम्भीर, आकलन वस्तुनिष्ठ, प्रस्तुति लाजवाब, शब्दचयन सटीक मुदा मोन कहि रहल अछि एकरा आओर बढ़ियाँ काएल जा सकैत छल.
नीक कविता
संगहि जंऽ नीक लागे
तऽ एक टा गप्प कही
कविता मे उरॊज शब्द खटकल
साहित्य मे एहि शब्द केर प्रचलन
सुंदरताक प्रतीक लेल हॊइत छैक
सामाजिक विद्रूपताक वर्णण करैत काल
लॊग एहन प्रयॊग अज्ञानता वश करैत अछि
अन्यथा सायाश
सायाश केर कॊनॊ जरूरति बुझना नहि जाइत अछि
तें ध्यान दी शब्द चयन मे अतिरिक्त सावधानी आवश्यक
नहि तऽ अहां केर कवित क्यॊ किएक पऽढत
जं अहां कविता लिखैत काल गंभीरता नहि
देखेबै कविता आ पाठकक प्रति तऽऽऽऽऽ
एखन तऽ उत्साहवर्धन !!!
रचना पर अप्पन विचार देबाक लेल, धन्यवाद्.
श्री विवेकानंद जी, अहांक सुझाब पर विचार क रहल छि..
उरोज के स्थान पे कोण शब्द, सुझाब देल जाय.. प्रतीक्षा रहत..
अहांके ओहि महिला के केहन रूप
प्रस्तुत करबाक अय
से तऽ अहिं जनबए ने
की अहां ओहि औरत कें
मनुष्य के स्तर सं खसा देबऽ चाहैत छी
सामान्य जीवन आ अधिकार संऽ वंचित
भऽ लॊक जानवर सन भऽ जाइत अछि
से तऽ अहूं के बूझल हैत
तें हम कहैत छिएक जानवर सन जीवन
या जानवर सन व्यवहार
गाम में सुनने हॊएब
बहुत भदेस भाषा में कहैत कॊनॊ जनी के
फलां के चुची में दूधे नहि उतरलै
एहि शब्द मे विलक्षण अर्थ छैक
ई एकहि संग अभाव-विद्रूपता-मानवीय क्षरण-अशॊभन दृष्टि
सामाजिक वा ईश्वरीय अन्याय
सब किछु व्यक्त कऽ दैत छैक
कहल जाएत छैक जे कोनो रचना पर भेला आलोचनाक उचित जबाब होय छैक अगिला रचना। कहय के तात्पर्य इ जे अपनेक पिछला रचना जाहि तरहेँ आलोचना भेल छल ओकर नीक जबाब लय के अहाँ अयलहुँ। नीक रचना आ संगे-संग श्री विवेकानन्द जीक सुझाव सेहो विचारणीय।
सुभाष जी,
बिना लाग लपेट कही त' हम्मर दृष्टि में ई अपनेक एखन धरि के सर्व श्रेष्ठ कविता थीक ! वस्तुतः विद्रूप यथार्थवादी लेखन !! मुदा हाँ, एहि तरहक लेखन हेतु शब्द-चयन बड़ सतर्कताक आवश्यकता रहैत छैक ! तें विवेकानंदजी कें सुझाब अहांक कविता पर सोन में सुगंधक काज करत !! प्रतीक्षा अछि अगिला रचनाक !!!
Post a Comment