- कुन्दन कुमार मल्लिक
जॆठक दुपहरिया,चोँच मे खर-पात दबौने,
उडैत एकटा चिडय,
अँफसिआयैत,
कनेक टा खोता के लेल,
व्यवसायिक व्यस्तता आ किछु निजी समस्या बहुत दिन सँ लेखनी पर लगाम लगा देने छल। त' सोचलहुँ जे आई अपन जन्मदिन पर पाठक बन्धु लोकनि केँ लेल किछु नव प्रस्तुति लय के आयल जाय। कविता केहन लागल से जरुर लिखब।
- कुन्दन कुमार मल्लिक
दलान मे बैसल,
देखि रहल छलहुँ,
ओकर अंतहीन प्रयास,
एहिना तs हमहुँ दौडैत रहैत छी,
हमहीं कियैक,
कतॆको एहॆन हॆताह,
दौडैत-भागैत आ अँफसिआयैत,
एहि शहर स’ ओहि शहर,
एकटा घरक लेल,
कैंचा जोडति एक-एकटा,
अपन पेट काटि के,
किछु के माथ पर छत भेटि जाय छन्हि
त’ किछु टूटि जायत छथि,
इ सपना नेने।
9 comments:
Bahut badhiya....
Janmdin k bahut- bahut badhai....
Dhanyawad Kundan G
kabita ekta saili hoitchhai. sabhak saili apane kisimak. kundanji je bhab prastut kara chane chhaith tahi ke lel kane aaor mehanat ke jaroori chhain
Santosh Kumar Mishra
Kathmandu, Nepal
kavita ke bhaao sargarbhit achhi ! muda shailee mein kichhu paripakwataak abhaao parilakshit hoyet achhi ! Santosh ji ke kahab theeke chhainh ! Kichhu aor parishram kavitaak utkrishtataak shikhar par pahunchaa sakait chhal! Kohun saahitya srijan hetu ta apnahi dhanyawaadak patra chhehe !! bhane der saon muda janmdin ke shubh-kaamna !!!
badhiya chhai ...
auro likhait rahu ..
Mitesh Mallick
bahut badhiya achi, hamra samajh sa kavita ke bhaw uttam achi, jaha tak shaili ke baat chai ham bahut ta nai bujhait chi muda hamra oho bejai nai lagal han.
kundan jee ek ber pher nik kawita anne chhaith. muda dhyan rakhab je kawita CHIDAY per achhi. pahine sehoi chiday katay-katay nahi ural chhal ?
subhash
Katau yena laagal je hamar mon ak baat jihh sa ghich utari dene hoi .....bahut badhiya lagal! Sang lagal janmdinak bahut badhai !
कुन्दन जी;
एहि बेर टिप्पणी देर सँ लिखबाक लेल कोनो व्यवसायिक प्रतिबद्धता नहि छल, अपितु आगामी प्रायोजन’क लेल बेसी चिन्तित छलहुँ. आब गाड़ी पटरी पर आबैत देखलहुँ तऽ मोन भेल टिप्पणी दऽ दी.
अहाँके हम लिखने छलहुँ जे रचनाकार ओएह नीक जे अपन रचना मे सुधार’क गुँजाइश हरदम छोड़ि दैत. जाहि दिन रचनाकार केँ ई होमय लागन्हि कि हुनकर रचना सबसँ नीक अछि तऽ, ओहि दिन बुझु जे ओहि व्यक्ति मे एक रचनाकार’क मृत्यु भऽ गेल.
एहि सँ पहिल कविता मे टिप्पणी लिखने छलहुँ जे अहाँ एत्तेक रचना केलाक बाद आब अहाँक रचना दोसर पायदान पर जेबाक चाही. तऽ आई हम लिखि रहल छी जे हमर शिकायत दूर भऽ गेल.
चोँच मे खर-पात दबौने,
उडैत एकटा चिडय,
अँफसिआयैत,
कनेक टा खोता के लेल
हमरा विशेष पसन्द आएल. अहाँक अन्दर केर रचनाकार लेल बिना मृत्यु’क अह्वाहन करैत हम दावा कऽ सकैत छी सुधारक गुन्जाइश एखनो अछि.
डा० पद्मनाभ मिश्र
धन्य-धन्य ओ मिथिला महान, हम सब छी जकर संतान ।
विश्व करैछ जकर गुणगान, धन्य-धन्य ओ मिथिला महान ।।
रामक सासुर छैन जाहि ठाम, कपिल, कणाद, गौतमक स्थान ।
सुर, नर, मुनि करैछ जकर यशगान, धन्य-धन्य ओ मिथिला महान ।।
सनातन धर्मक जखन भ गेल लोप, नास्तिक सभक सभतरि पसरि गेल कोप ।
तखनहु मिथिला में छल धर्मक इजोत, सामवेदक मंत्रोच्चार सॅ ओतप्रोत ।।
आदि शंकराचार्यक अछि इ प्रसंग, शास्त्रार्थ केला मंडन ओ भारतीक संग ।
वैदिक धर्मक पुन: भेल विस्तार, विश्व देखलक मिथिलाक संस्कार ।।
मैथिल होएबा पर अछि हमरा अभिमान, अतिथि सत्कार अछि जकर धर्मप्राण ।
सुर, नर, मुनि करैछ जकर यशगान, धन्य-धन्य ओ मिथिला महान ।। धन्य-धन्य ओ मिथिला महान ।।।
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